कमल की कलम से !
आईये आज आपको लिए चलते हैं पृथ्वी राज चौहान का किला
किला राय पिथौरा.
अफसोस यह है कि ज्यादातर दिल्ली वासी भी इसे नहीं जानते हैं.
महरौली-बदरपुर रोड़ और अधचीनी से कुतुब मीनार की ओर जाने वाली सड़क किला राय पिथौरा को काटती हुई नजर आती है. किला राय पिथौरा के खंडहर संजय वन और ‘दक्षिण दिल्ली रिज’ के क्षेत्र में भी फैले हुए हैं. किले की दीवार के दिखाई देने वाले हिस्से कुतुबलिस्ट कोर्स के आगे ‘ किला राय पिथौरा पार्क’ में स्थित हैं. कुतुब मीनार का क्षेत्र किला राय पिथौरा का ही हिस्सा है. राय पिथौरा के अवशेष आपको यहाँ दिखाई देते हैं.
किला राय पिथौरा में पृथ्वीराज चौहान की घोड़े पर सवार विशाल प्रतिमा है. किला राय पिथौरा के परिसर के बीचो बीच एक संग्रहालय है जहां चित्र प्रदर्शित किए गए हैं. एक जमाने में किला राय पिथौरा के 13 प्रवेश द्वार हुआ करते थे.
किला राय पिथौरा का निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने किया था. इन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है.
वह मुस्लिम अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध हिन्दू प्रतिरोध के लिए प्रसिद्ध नायक के रूप में जाने जाते हैं. पृथ्वीराज के पूर्वजों ने तोमर राजपूतों से दिल्ली को छीना था.
तोमर राजा, अनंगपाल 1 ने दिल्ली में शायद पहला किला बनाया जिसे लाल कोट कहा गया. इस पर पृथ्वीराज ने कब्जा किया और उसे अपने शहर किला राय पिथौरा तक बढ़ाया.इस किले की प्राचीरों के खंडहर अभी भी कुतुब मीनार के आसपास के क्षेत्र में थोड़े से देखे जा सकते हैं.
यह माना जाता है कि कुववत-उल-इस्लाम मस्जिद और कुतुब मीनार के परिसर में सत्ताइस हिन्दू मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं. यहाँ के लौह स्तम्भ जंग लगे बिना विभिन्न संघर्षों का गवाह रहा है और राजपूत वंश के गौरव और समृद्धि को कहानी बताता है.
लौह स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का हिस्सा नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था। जानकार बताते हैं संभवतः तोमर राजा अनंगपाल-II इसे मध्य भारत के उदयगिरि नामक स्थान से लाए थे.
परन्तु एक जानकारी के अनुसार,एक बहुत बड़े इतिहास कार श्री तुलसी जी बताते हैं कि लौह स्तम्भ नालंदा-जहानाबाद के बौर्डर क्षेत्र में ढाला गया और चन्द्रगुप्त1 के समय में यहाँ से दिल्ली ले जाया गया.
दिल्ली तोमर राजवंश के राजा महाराज अनंगपाल ने बसाया था. उनका साम्राज्य दिल्ली से लेकर थानेसर तक फैला हुआ था. पहले अनंगपाल ने अनंगपुर, सूरजकुंड को राजधानी बनाया. बाद में राजधानी दिल्ली ले आए.
महाराजा अनंगपाल ने दिल्ली में एक किला बनवाया.
इसका नाम लालकोट रखा गया. इस किले के अवशेष अब भी क़ुतुब काम्प्लेक्स के आसपास देखे जा सकते हैं.
यहाँ इस किले की मोटी-मोटी दीवारें आज भी मौजूद हैं.
दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान की एक मूर्ति भी लगी हुई है.
पृथ्वीराज चौहान को रायपिथौरा कहते थे.उन्हीं के नाम पर किले का नाम दुर्ग राय पिथौरा हो गया. बाद में किला राय पिथौरा के नाम से मशहूर हो गया.
पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने के बाद मोहम्मद गोरी ने दिल्ली का राजकाज अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया. किला राय पिथौरा का पूरा घेरा अब तक खोजा नहीं जा सका है.
दिल्ली के प्राचीन शहर माने जाने वाले जहाँपनाह की दीवार भी उसला राय पिथौरा से मिलती है. यह दीवार साकेत में प्रेस एन्क्लेव के पास किला राय पिथौरा की दीवार से मिलती है.
1206 से 1290 तक गुलाम वंश के सभी शासकों ने राय किला पिथौरा से ही अपना शासन चलाया. यह क्षेत्र महरौली में आता है , जिसका अर्थ है मिहिरावली अर्थात मिहिर का निवास. इसका निर्माण गुर्जर सम्राट मिहिर भोज (836-885) ने करवाया था. शिलालेख से भी यह पता चलता है.
कैसे पहुँचें ?
यहाँ पहुँचना बहुत आसान है.
दिल्ली मेट्रो की येलो लाइन पर साकेत मेट्रो स्टेशन के बाहर निकलते ही ‘ किला राय पिथौरा’ का बोर्ड लगा हुआ है.
बस संख्या 534 , 680 , 548 किला राय पिथौरा से होकर गुजरती हैं.
निजी वाहन से आने वालों के लिए बाहर पार्किंग की जगह है.